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इस कद्र बेफिक्री हो

Kahi-Ankahi
Kahi-Ankahi
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इस कद्र बेफिक्री हो ओरत के लिए ,

कि उसे स्वयं का अस्तित्व बनाने  पे शर्माना न पड़े !

गर कोई और करता है उसकी आबरू को तार–तार,

तो शर्मसार हो वो दरिंदा

ओरत को मुह छिपाना न पड़े !!

 

हो जाये कुछ ऐसा कि रहे वो इंसान ही,

हमें ओरत को देवी या महान  बनाना न पड़े !

इस कद्र बराबर हो जाएँ सब इस जहाँ में,

कि अपने अधिकार के लिए

हर बार ओरत को चिल्लाना न पड़े !!

 

एक ओरत होने के नाते मेरी बस
इतनी चाहत है !

क्योंकि जब भी किसी ओरत के
सम्मान को पहुँचती है ठेस,

तो होती दुनिया में हर ओरत
आहत है !!

 

गर ओरत के लिए दुनिया में सिर्फ रुस्वाइयाँ होंगी,

तो याद रख ए मर्द तेरे हिस्से में बस तन्हाइयां होंगी !

इज़त नहीं कर सकता न कर,

पर कम–से–कम उस इज़त को आहत न कर !

तेरा ही अस्तित्व मिट जाये जहाँ से,

अब व्यर्थं इतना भी साहस न कर !!

 

इसे फरियाद मत समझना ,

ये  तेरे लिए सन्देश ज़रूरी है !

क्यूंकि तेरी भूख , प्यास मिटाने को निर्भर तू है ओरत पे,

ये उसकी नहीं मुर्ख तेरी मज़बूरी है !!

 

मत सोच कि एक अंग  में छिपा है उसका सम्मान,

ओरत ने ही बनाया है ये जहाँ
!

तो मत कर उसकी भावनाओं को इतना
छलनी,

कि करूड़ा कि ये मूरत तुझे प्यार
ही न दे पाये !

मत कर उसे मजबूर इतना,

कि संसार को रचने वाली ये जननी

स्वयं को तुझे जनने का अधिकार
ही न दे पाये !!

 

सोच क्या होगा गर कन्या कि
जगह होने लगे

पुरुष भ्रूड हत्या,

तब क्या नहीं हो जायेगा तेरा
ही अस्तित्व मिथ्या ?

 

याद रख दुनिया के लिए नफरत
नहीं

प्यार ज़रूरी है !

तेरी हर ज़रूरत के लिए निर्भर
तू है

मजबूर ओरत नहीं मुर्ख

ये तेरी मज़बूरी है !!

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