- 3 Posts
- 1 Comment
क्यों मुझे
पतझड़ पसन्द है
लोग अक्सर
पूछते हैं मुझसे आखिर क्यों तुम्हे पतझड़ पसन्द है?
भला सूखे
पत्तों और वीरान ज़िन्दगी में भी कहीं कोई रंग है?
लगता है उजङे
हुए पेङ मानो रो रहे हों।
लगता है मानो
बची हुई ज़िन्दगी का बोझ ढौ रहे हों॥
ऐसे पृश्न
अक्सर मुझे भीतर तक झिंझोङ जाया करते हैं।
और मेरे भीतर
एक पृश्न छोङ जाया करते हैं।
कि हाँ आखिर
क्यों है मुझे पतझङ पसंद?
ऐसे में होता
है मेरे भीतर एक अन्तर्दव्न्दव।
और मेरे अन्तर्मन
से एक आवाज़ आती है॥
कि हाँ, हाँ
मुझे पतझड़ भाता है ।
सूखे पेङों
का एक झुरमुट भी मुझमे जीवन जीने की तमन्ना भर जाता है॥
मुझे भला
लगता है………
मुझे भला
लगता है उन स्तब्ध , शान्त , नितान्त अकेले पेङों को निहारना।
मुझे खुशी
देता है उनसे बातें करना कहीं वीराने मे उन्हे पुकारना॥
क्या तुम्हे
नही लगता कि उनका मौन हर वक्त एक पृश्न किया करता है हमसे ?
मुझे लगता
है मानो वो ढेरों बातें करना चाहतें हो मुझसे॥
क्या तुम्हे
नही लगता कि उनकी आशा से भरी आँखें हर वक्त इस उन्मुक्त गगन को ताका करती हैं ?
उनकी आँखों
आशा की आशा हममे भी जीवन जीने की आशा भरती है ॥
उनकी आँखों
मे एक यकीं होता है,
उनकी आँखों
मे एक यकीं होता है कि बसन्त आएगा ।
उन्हे विश्वास
है कि इक दिन खुशियों से उनका भी पोर-पोर खिल जाएगा॥
क्या वो तुम्हे
उम्मीद का दामन ना छोङने का सन्देश नही देते?
क्या दुख
के बाद सुख की आहट का अन्देश नही देते?
बार-बार अहसास
कराते हैं मुझको,
बार-बार अहसास
कराते हैं मुझको
कि जीवन मे
सुख हैं तो हैं दुख भी।
सुख – दुख दोनो के साथ बिना जीवन नही कुछ भी॥
मन की आँखो
से देखो
मन की आँखो
से देखो,
तो जीवन के
सब रंग यहीं हैं।
आशा,विश्वास,इन्तज़ार
और फिर उल्लास,
यही तो ज़िन्दगी
है,
हाँ यही तो
ज़िन्दगी है
सही माइनो
मे यही ज़िन्दगी है ॥
Read Comments